LIC IPO: कमजोर मार्केट सेंटीमेंट के इस दौर में क्या LIC के इश्यू में निवेश करना चाहिए?
एलआईसी नए बिजनेसेज के लिए एजेंट्स पर बहुत ज्यादा डिपेंड करती है। अभी देशभर में एलआईसी के 12 लाख से ज्यादा एजेट्स हैं। कंपनी का करीब 94 फीसदी नया प्रीमियम एजेंट् के जरिए आता है
एलआईसी की ब्रान्ड वैल्यू को देखते हुए इसके आईपीओ की सफलता को लेकर कोई संदेह नहीं है। यह आईपीओ ओवरसब्सक्रिप्शन के मामले में भी रिकॉर्ड बना सकता है।
LIC का आईपीओ (LIC IPO) अगले महीने आएगा। यह इश्यू 60,000 से 90,000 करोड़ रुपये के बीच हो सकता है। यह देश का सबसे बड़ा आईपीओ होगा। इससे पहले पेटीएम (Paytm) का 18,000 करोड़ रुपये का देश का सबसे बड़ा आईपीओ पेश किया था। लिस्टिंग के बाद एलआईसी देश की सबसे बड़ी कंपनियों के क्लब में शामिल हो जाएगी। अभी मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर रिलायंस इंडस्ट्रीज देश की सबसे बड़ी लिस्टेड कंपनी है। टीसीएस दूसरे पायदान पर है।
एलआईसी के आईपीओ को लेकर बहुत हलचल है। मीडिया में दिनरात इस इश्यू की चर्चा है। उधर, एलआईसी खुद अखबारों सहित हर मीडिया में इसके खूब विज्ञापन दे रही है। वह अपने पॉलिसीहोल्डर्स को इस इश्यू के बारे में जरूरी बातें बता रही है। वह यह भी बता रही है कि इस इश्यू में इनवेस्ट करने के लिए उन्हें क्या करना होगा। कई बड़े इश्यू इनवेस्टर्स की उम्मीदें पूरी करने में नाकाम रहे हैं। पेटीएम का आईपीओ इसका उदाहरण है। लिस्टिंग के बाद से पेटीएम के शेयर का भाव गिरकर करीब आधा रह गया था। इसलिए एलआईसी के इश्यू में इनवेस्ट करने से पहले आपको अच्छी तरह से सोचविचार कर लेना चाहिए। आइए एलआईसी के बारे में कुछ बातें जानते हैं, जो आईपीओ में इनवेस्टमें का फैसला लेने में आपकी हेल्प कर सकती हैं।
एलआईसी पर सरकार का नियंत्रण
आईपीओ के बाद भी एलआईसी पर सरकार का नियंत्रण बना रहेगा। कई बार एलआईसी को सरकारी कंपनियों के आईपीओ या इश्यू को नाकाम होने से बचाने के लिए आगे आना पड़ा है। इसका बड़ा कैश रिजर्व सरकारी बैंकों की आर्थिक मदद के लिए भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। आईडीबीआई के प्राइवेटाइजेशन के लिए सरकार को एलआईसी की मदद लेनी पड़ी थी। सरकार अगर एलआईसी का ऐसा इस्तेमाल आगे जारी रखती है तो उसका शेयरहोल्डर्स के इंट्रेस्ट पर खराब असर पड़ेगा।
साल 2000 से पहले इश्योरेंस मार्केट में एलआईसी की बादशाहत थी। 2000 में प्राइवेट कंपनियों के लिए इश्योरेंस सेक्टर के दरवाजे खुलने के बाद एलआईसी की बाजार हिस्सेदारी लगातार घट रही है। अभी उसकी बाजार हिस्सेदारी करीब 66 फीसदी है। इसकी वजह यह है कि प्राइवेट कंपनियों से एलआईसी को कड़ी टक्कर मिल रही है। एसबीआई लाइफ, आईसीआसीआई प्रू और एचडीएफसी लाइफ जैसी बड़ी प्राइवेट कंपनियां कस्टमर्स को सर्विस देने में टेक्नोलॉजी का बहुत इस्तेमाल करती हैं। इस मामले में एलआईसी काफी पीछे हैं। एलआईसी का इश्योरेंस प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले काफी महंगा भी है। ऐसे में आने वाले समय में एलआईसी की बाजार हिस्सेदारी में और कमी आ सकती है।
एजेंट्स पर बहुत ज्यादा निर्भरता
एलआईसी नए बिजनेसेज के लिए एजेंट्स पर बहुत ज्यादा डिपेंड करती है। अभी देशभर में एलआईसी के 12 लाख से ज्यादा एजेट्स हैं। कंपनी का करीब 94 फीसदी नया प्रीमियम एजेंट् के जरिए आता है। पिछले कुछ सालों में एजेंट्स के कमीशन में बड़ी कमी आई है। इरडा ने ग्राहकों के हित में कमीशन से जुड़े नियमों को सख्त बनाया है। जैसे-जैसे कमीशन घटेगा, पॉलिसी बेचने में एलआईसी की दिलचस्पी में कमी आ सकती है। इसका सीधा असर एलआईसी के न्यू बिजनेस पर पडे़गा। एजेंट्स कमीशन के लालच में मिससेलिंग भी करते हैं। ऐसी कई पॉलिसी खुलने के कुछ ही समय बाद बंद हो जाती हैं।
पॉलिसीहोल्डर्स के प्रॉफिट में कमी
LIC ने आईपोओ की सफलता के लिए अपने सरप्लस डिस्ट्रिब्यूशन के नियम में बदलाव किया है। पिछले साल उसने कंसॉलिडेटेड लाइफ फंड को दो हिस्से में बांट दिया। इस फंड में एलआईसी को होने वाले प्रॉफिट को रखा जाता है। अब इसका एक हिस्सा पॉलिसीहोल्डर्स के लिए रखा गया है। दूसरा नॉन-पार्टिसिपेटरी शेयरहोल्डर के लिए रखा गया है। पहले इस फंड का 95 फीसदी हिस्सा पॉलिसीहोल्डर्स में बांट दिया जाता था। बाकी शेयरहोल्डर्स को जाता था। अब पूरा नॉन-पार्टिसिपेटरी फंड शेयरहोल्डर्स को जाएगा। इसके चलते पार्टिसिपेटरी पॉलिसीहोल्डर्स को मिलने वाला सरप्लस कम हो जाएगा। इससे नए ग्राहकों में एलआईसी का आकर्षण घटेगा।
आपको क्या करना चाहिए?
एलआईसी की ब्रान्ड वैल्यू को देखते हुए इसके आईपीओ की सफलता को लेकर कोई संदेह नहीं है। यह आईपीओ ओवरसब्सक्रिप्शन के मामले में भी रिकॉर्ड बना सकता है। इसकी वजह यह है कि एलआईसी की पहुंच देश के कोने-कोने तक है। कंपनी जिस तरह से अपने पॉलिसीहोल्डर्स को इश्यू में निवेश के लिए लुभा रही है, उससे इस आईपीओ में रिकॉर्ड बोली लगाई जा सकती है। लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि एलआईसी क्या प्राइस बैंड तय करती है। अगर वह प्राइस बैंड ज्यादा तय करती है तो जाहिर है कि इनवेस्टर्स के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचेगा। हां, लिस्टिंग गेंस के लिए इसमें निवेश करने वालों को फायदा मिल सकता है। इसलिए प्राइस बैंड का ऐलान होने के बाद ही पता चलेगा कि यह इश्यू लंबी अवधि के लिए निवेशकों के लिए कैसा रहेगा।